Maharani Laxmi Bai smarak

 ग्वालियर की धरती पर रानी लक्ष्मीबाई की अमर स्मृति: महारानी लक्ष्मीबाई स्मारक

ग्वालियर वीरता की गाथा कहती धरती पर भारत की एक वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की याद में बना हुआ है महारानी लक्ष्मीबाई स्मारक। यह स्मारक न सिर्फ रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान को श्रद्धांजलि देता है बल्कि उनके अदम्य साहस और स्वतंत्रता के प्रति प्रेम का प्रतीक और गावह भी है।

स्मारक का स्थान और इतिहास


अंग्रेज इतिहासकारों के अनुसार रानी कोटा की सराय में जब शर्बत पी रही थी तभी ठीक सामने से अंग्रेज सैनिक ने उनके चेहरे पर तलवार चलाई जिसमें वह घायल हो गई और गंगादास की शाला की ओर उसके सैनिक ले भागे। यह तथ्य इसलिए सटीक नहीं बैठता है क्योंकि ह्यूरोज ने गरगज की पहाड़ी से ग्वालियर किले पर तोप का गोला यह समझकर चलवाया था कि उसे वहां रानी के खड़े होने का दूरबीन से आभास हुआ था। हकीकत यह है कि 17 जून को राव साहब एवं तात्याटोपे से स्मिथ का कड़ा मुकावला हुआ जिसमें अंग्रेजों से उनकी तोपें छीन ली गई। ग्वालियर किला के उरवाई द्वार पर अंग्रेजों ने हमला बोल दिया तथा उनकी सेना किला पर चढऩे लगी।

 

उस समय रानी किला के मुख्य द्वार किलागेट से बाहर युद्ध करने के लिए निकली। रानी का ससुराल पक्ष चाहता था कि रानी विधवा हो गई है इसलिए उन्हें सिर का मुण्डन कराकर सामान्य विधवा की तरह सफेद व पहनकर रहना चाहिए। रानी ने मुंडन कराया तथा मर्दाना सफेद व धारण करना शुरु कर दिया था। वह कमर में पीताम्बरी पट्टा बांधती थी। रानी जब किला गेट से किला तलहटी के इलाके में पहुंची तब वहां भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में रानी की रक्षा करते हुए अनेक वेश्याएं तथा सैकड़ों साधुओं ने बलिदान दिया। यहां रानी के नौ वफादार मुस्लिम तोपचियों ने अंग्रेजों को रोका जो मारे गये। इस इलाके को आज नौ गजा रोड कहा जाता है।

रानी ने युद्ध करते हुए नाला पार करने के लिए अपने घोड़े को कुदवाया जो घायल होकर गिर पड़ा। रानी के सैनिक दूसरे घोड़े का इंतजाम करना चाहते थे किन्तु अंग्रेज सैनिकों के हमले के कारण नहीं कर पाये। रानी युद्ध करते हुए महल परिसर होते हुए फूलबाग की तरफ के महल के द्वार पर पहुंचती इससे पहले वह तलवार के प्रहार से घायल हो गई। रानी को लेकर नवाब साहब बांदा आगे बढ़े। वे अंग्रेजों से युद्ध भी कर रहे थे। उस समय ह्यूरोज ने तोप का गोला दागा जिससे नवाब साहब बलिदान हो गये। रानी घायल हो गई। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि रानी को अंग्रेज ने गोली मारी थी जिसे रानी ने तत्काल मौत के घाट उतार दिया। इस युद्ध में सहेली मुन्दर भी मारी गई। अंग्रेज इतिहासकार मानते हैं कि रानी एवं मुन्दर को गंगादास की शाला के बड़े हवन कुण्ड में लेटाकर अंतिम संस्कार कर दिया। हकीकत यह है कि रानी को फूलबाग से बाबा गंगादास की शाला ले जाया गया। यहां रानी ने दत्तक पुत्र की रक्षा करने तथा उनके शरीर को अंग्रेज छू न पायें कहते हुए देह त्याग दी।




 
रानी के साथ मौजूद सैनिक दत्तक पुत्र को लेकर भागे। रात हो गई थी। बाबा गंगादास ने रानी एवं मुन्दर के अंतिम संस्कार की क्रियाएं की। शाला में घोड़े अधिक थे इसलिए घास काफी थी। इस घास में रानी का अंतिम संस्कार कर बाबा एवं शिष्यों ने स्थान छोड़ दिया। बाबा के आदेश पर एक साधु रुका वहां भीषण आग देखकर अंग्रेजों ने शाला को घेर लिया। वहां मौजूद साधु ने अंग्रेजों को भ्रमित करने के लिए कहा कि कुण्ड की चिन्गारी से घोड़ों की घास में आग लग गई। यह साधु वहां रुका रहा उसने राख का ढेर बनाकर पत्थरों का चबूतरा बनाया और वह भी भाग गया। रानी के बलिदान के साथ युद्ध समाप्त हो गया था। वह 17 जून 1858 की रात थी। अंग्रेजी समय से उसे 18 जून माना जाता है।




 स्मारक का स्वरूप

महारानी लक्ष्मीबाई स्मारक एक शांत और सुंदर वातावरण में स्थित है। स्मारक संगमरमर से बना हुआ है और यहां रानी की घोड़े पर बैठे हुए विशाल प्रतिमा है जिसमें भाई अपने हाथों में तलवार लिए हुए आज भी जीवंत प्रतीत होती है। इसके साथ ही यहां मध्य प्रदेश शासन द्वारा शहीद ज्योति निरंतर जलाई जा रही है । स्मारक के चारों तरफ हरे भरे पेड़-पौधे लगे हुए हैं जो वातावरण को और भी मनमोहक बना देते हैं। स्मारक के पास ही एक संग्रहालय भी है जिसमें रानी लक्ष्मीबाई से जुड़ी वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। 


 राष्ट्रीय वीरता की प्रेरणा

यह स्मारक न सिर्फ रानी लक्ष्मीबाई को श्रद्धांजलि देता है बल्कि देश के वीर सपूतों को भी नमन करता है। हर साल यहां देशभक्त श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं। यह स्मारक हमें यह याद दिलाता है कि भारत की आजादी कितने बलिदानों के बाद मिली है और हमें अपने देश के लिए हमेशा समर्पित रहना चाहिए।



इस स्मारक को देखने के लिए सुबह का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। आप ग्वालियर घूमने आए हैं तो महारानी लक्ष्मीबाई स्मारक जरूर जाएं और भारत की इस वीर रानी को श्रद्धांजलि अर्पित करें।

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