Vikram mahal Gwalior
ग्वालियर की धरोहर: विक्रम महल - इतिहास, स्थापत्य और रहस्य
ग्वालियर दुर्ग अपने ऐतिहासिक स्मारकों के लिए जाना जाता है, जिनमें से एक है विक्रम महल। यह 12वीं शताब्दी के आसपास निर्मित माना जाता है, हालांकि निर्माणकाल को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। आइए, इस लेख में विक्रम महल के इतिहास, स्थापत्य कला और इससे जुड़े रहस्य की झलक देखें।
अतीत की परछाईं:
विक्रम महल का निर्माण राजा मानसिंह के पुत्र एवं उत्तराधिकारी 1516 से 1523 ई द्वारा करवाया गया था । स्थापत्य की दृष्टि से यह एक शाही इमारत है।
स्थापत्य शैली का अनूठा प्रदर्शन :
विक्रम महल का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है। यह महल 65 मीटर लंबा है और दो मंजिलों में विभाजित है। भवन के मध्य में एक बारादरी है, जिसमें 12 दरवाजे हैं। दोनों तरफ हॉल बने हुए हैं, जिनमें खंभों और मेहराबों का प्रयोग किया गया है। महल की छत पर शिखरनुमा संरचनाएं देखी जा सकती हैं।
विक्रम महल की स्थापत्य शैली में हिंदू स्थापत्य कला का प्रभाव स्पष्ट है। हालांकि, कुछ मेहराबों और डिजाइनों में मुगल शैली की झलक भी दिखाई देती है।
इतिहास और किंवदंती का संगम :
विक्रम महल के नामकरण के पीछे भी कोई ठोस सबूत नहीं मिलता है। एक मान्यता के अनुसार, इसका नाम राजा विक्रमादित्य के नाम पर रखा गया था। हालांकि, इस दावे को प्रमाणित करने के लिए कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है।
दूसरी ओर, कुछ स्थानीय किंवदंतियां इस महल को प्रेतों का निवास स्थान मानती हैं। हालांकि, इन किंवदंतियों में कितना सच्चाई है, यह बता पाना मुश्किल है।
वर्तमान में विक्रम महल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) के संरक्षण में है। यह महल अब निवास के रूप में उपयोग में नहीं है, लेकिन ग्वालियर दुर्ग घूमने आने वाले पर्यटकों के लिए खुला है।
विक्रम महल का टिकट जहांगीर, कर्ण , शाहजहां महल के टिकट में ही सम्मिलित होता है, जिसका कुल खर्च
20 रुपये भारतीय नागरिक
तथा 200 रुपये विदेशी नागरिक
के लिए निर्धारित है
Comments
Post a Comment