Suraj kund Gwalior
सूरज कुंड: ग्वालियर किले का प्राचीन मंच
ग्वालियर किले के प्रांगण में स्थित सूरज कुंड, अपने ऐतिहासिक और पुरातन रहस्य से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि 10वीं शताब्दी में तोमर वंश के राजा सूर्यपाल द्वारा निर्मित यह संरचना, एक विशिष्ट रंगमंचनुमा स्थल है। इसकी बनावट यूनानी रंगभूमि से मिलती-जुलती है। सूर्य देव की आराधना के लिए बनवाए गए इस कुंड की कहानी कई परतों में समेटी हुई है।
सूरज कुंड एक विशाल आयताकार तालाबनुमा स्थल है। इसकी सीढ़ियाँ दर्शकों के बैठने के लिए मंच की तरह निर्मित हैं। मंच के पीछे की दीवार पर देवी-देताओं की मूर्तियों के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। यह माना जाता है कि इन मूर्तियों के सामने ही नाट्य-प्रदर्शन किया जाता था।
हालांकि, सूरज कुंड के असली मकसद को लेकर इतिहासकारों में आज भी बहस जारी है। कुछ का मानना है कि यह वास्तव में एक रंगमंच था, जहाँ नाट्य-कला का प्रदर्शन होता था। वहीं कुछ अन्य इतिहासकार इसे एक तालाब या फिर जल संग्रहण स्थल मानते हैं। पुरातात्विक सबूतों की कमी के कारण इसका निश्चित उद्देश्य बता पाना मुश्किल है।
जैसा कि नाम से पता चलता है, सूरज कुंड का संबंध सूर्य देव से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य की किरणें सीधे इस कुंड में पड़ती थीं। इस वजह से सूर्य पूजा के अनुष्ठानों में इसका विशेष महत्व था। इसके अलावा, कुंड के चारों ओर बने घाटों पर लोग स्नान भी किया करते थे।
वर्तमान समय में सूरज कुंड अपने भव्य अतीत को खो चुका है। सालों बीतने के साथ यह कुंड सूख चुका है और इसकी संरचना क्षतिग्रस्त हो गई है। लेकिन फिर भी, यह ग्वालियर किले के इतिहास का एक अनोखा हिस्सा है। सूरज कुंड हमें उस काल के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन की एक झलक प्रदान करता है।
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