Sahstrabahu temple Gwalior

ग्वालियर का अनूठा सौंदर्य - सास-बहू का मंदिर 


ग्वालियर का किला अपने ऐतिहासिक महत्व और भव्य स्थापत्य कला के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस किले के प्रांगण में ही स्थित है एक अनोखा मंदिर - सास-बहू का मंदिर। यह मंदिर न सिर्फ अपनी कलात्मक शैली के लिए, बल्कि नाम के पीछे छिपे रहस्य के लिए भी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है।  



मंदिर का इतिहास और स्थापत्य कला (History and Architecture)


सास-बहू का मंदिर वास्तव में दो जुड़े हुए मंदिरों का समूह है। इन मंदिरों को 11वीं शताब्दी में कच्छपघात राजवंश के महाराजा महिपाल द्वारा बनवाया गया था। मंदिर का निर्माण राजा रत्नपाल द्वारा प्रारंभ किया गया था जो महिपाल के शासनकाल 1093 ई. में पूर्ण हुआ था ।ऐसा माना जाता है कि इन मंदिरों में से बड़े मंदिर का निर्माण पहले हुआ था, जिसे बाद में छोटे मंदिर से जोड़ा गया। 



दोनों मंदिरों की वास्तुकला शैली गुर्जर-प्रतिहार शैली से प्रभावित है। मंदिरों की बाहरी दीवारें जटिल नक्काशी से सुशोभित हैं। खासतौर पर, इनके प्रवेश द्वारों के ऊपर ब्रह्मा, विष्णु और सरस्वती जैसी देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं।  इसके अलावा मंदिर की बाह्य दीवारें ज्यामितीय पुष्पकृतियों ,पशु पक्षियों , संगीतकार , नर्तक , गज और कृष्ण लीला के सुंदर दृश्य से परिपूर्ण है । छोटे मंदिर की दीवारें भी इसी तरह से परिपूर्ण है।  इस मंदिर में एक लघु केंद्रीय सभागार व प्रकोष्ठ भी है । बड़े मंदिर के मुख्य मंडप में लगे प्रस्तर अभिलेख  से मंदिर के निर्माण धार्मिक समुदाय धार्मिक कर्मकांड एवं मंदिर के राजस्व के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।


 नाम का रहस्य (The Mystery Behind the Name)


मंदिर के नाम के पीछे कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यह मंदिर कभी किसी सास (Mother-in-law) और बहू (Daughter-in-law) को समर्पित था। हालांकि, इस दावे को पुष्ट करने के लिए कोई सबूत नहीं है। 



दूसरी ओर, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर मूल रूप से भगवान विष्णु के सहस्रबाहु (हज़ार भुजाओं वाले) स्वरूप को समर्पित था। समय के साथ "सहस्रबाहु" का अपभ्रंश होकर "सास-बहू" हो गया होगा। 


वर्तमान स्थिति (Current Status)


वर्तमान में, दोनों मंदिरों में से कोई भी पूजा स्थल के रूप में उपयोग में नहीं है। पुरातात्विक महत्व को ध्यान में रखते हुए, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) इन मंदिरों का संरक्षण करता है। 



घूमने का समय और शुल्क (Visiting Time and Fees)


सास-बहू का मंदिर सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है। प्रवेश शुल्क के रूप में भारतीय नागरिकों को ₹20 और विदेशी पर्यटकों को ₹200 का भुगतान करना होता है। 



ग्वालियर की यात्रा के दौरान सास-बहू का मंदिर निश्चित रूप से देखने लायक स्थल है। यह मंदिर न केवल इतिहास प्रेमियों को, बल्कि कला और स्थापत्य शैली के शौकीनों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। 


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अतिरिक्त जानकारी:



* ग्वालियर किले तक पहुंचने के लिए आप टैक्सी या रिक्शा का सहारा ले सकते हैं। 

* ग्वालियर किले के अंदर जाने के लिए अलग से प्रवेश शुल्क नहीं देना होता है। 

* मानसून के दौरान मंदिर की खूबसूरती और बढ़ जाती है। 






इस लेख के माध्यम से हम उम्मीद करते हैं कि आपको ग्वालियर के सास-बहू मंदिर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिल गई होगी।



Thankyou 

Team tourism Gwalior 

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