Gujari Mahal Gwalior

ग्वालियर का प्रेम का प्रतीक: गुजरी महल - इतिहास, कला और किंवदंतियां

ग्वालियर दुर्ग अपने ऐतिहासिक स्मारकों के लिए विख्यात है। उन्हीं स्मारकों में से एक है गुजरी महल, जो अपने इतिहास, प्रेम कहानी और स्थापत्य शैली के कारण पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। आइए, इस लेख में गुजरी महल के रोमांचक पहलुओं की यात्रा करें।




 प्रेम कहानी की निशानी: निर्माण का इतिहास (A Symbol of Love: Construction History)

गुजरी महल का निर्माण 15वीं शताब्दी में तोमर राजवंश के राजा मान सिंह द्वारा करवाया गया था। कहा जाता है कि यह महल उन्होंने अपनी पत्नी मृगनयनी के लिए बनवाया था। मृगनयनी एक दूध बेचने वाली महिला थीं, जिनसे राजा शिकार के दौरान मिले थे और उनके सौन्दर्य से मोहित हो गए। ऐसा माना जाता है कि मृगनयनी ने अपने हाथों से दो झगड़ रहे सांडौं को अलग कर दिया था उसकी बहादुरी और सुंदरता देखकर राजा उसे पर मोहित हो ।

कहानी के अनुसार, रानी बनने के लिए मृगनयनी ने एक शर्त रखी थी कि राजा उनके गाँव से पानी लाने के लिए नहर बनवाएंगे। राजा ने उनकी शर्त मानी और गांव से महल तक पानी लाने के लिए नहर बनवाई , फिर पानी को रानी के महल के तलघर में पाइपों द्वारा लाया गया ।आज यह लाइन व नहर मौजूद नहीं है , किंतु पाइप के अवशेषों को तलघर में देखा जा सकता है । रानी तालाब के पास ही मृगनयनी का गाँव "मैहर राई" स्थित था।

इतिहासकारों के अनुसार, गुजरी महल के शिलालेखों पर राजा मान सिंह और रानी मृगनयनी दोनों के नाम अंकित हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि गुजरी महल प्रेम का प्रतीक है। 
स्थापत्य शैली का अनूठा संगम। (A Unique Blend of Architectural Styles)

गुजरी महल का निर्माण स्थानीय शैली और मुगल शैली के मिश्रण में किया गया है। यह महल एक आयताकार भवन है, जिसकी लंबाई 71 मीटर और चौड़ाई 60 मीटर है। भवन के अंदर एक विशाल आंगन है। 

गुजरी महल की बाहरी दीवारें सादे डिजाइनों से सुशोभित हैं। हालांकि, महल के कुछ हिस्सों में जालीदार नक्काशी , मेहराबों और हाथी घोडौं की आकृतियां को भी देखा जा सकता है।
 वर्तमान स्वरूप और पर्यटक सूचना । (Current Status and Tourist Information)

आज गुजरी महल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) के संरक्षण में है। यह महल अब शाही निवास के रूप में उपयोग में नहीं है, बल्कि इसे "गुजरी महल पुरातात्विक संग्रहालय" में बदल दिया गया है। यह संग्रहालय मध्य प्रदेश के पुरातात्विक इतिहास से जुड़ी महत्वपूर्ण कलाकृतियों का प्रदर्शन करता है। संग्रहालय में पाषाण प्रतिमाएं, सिक्के, हथियार, terracota मूर्तियां और प्राचीन लेख शामिल हैं। संग्रहालय के 28 कक्षों में मध्य प्रदेश की ईसापूर्व दूसरी शती ई. से १७वीं शती ई. तक की विभिन्न कलाकृतियों और पुरातात्विक धरोहरों का प्रदर्शन किया गया है।

गुजरी महल स्थित संग्रहालय मध्यप्रदेश का सबसे पुराना संग्रहालय है जिसमें मध्यप्रदेश के पुरातत्व इतिहास से संबंधित महत्वपूर्ण शिलालेख भी रखे गए हैं और विदिशा के बेसनगर, पवाया से प्राप्त महत्वपूर्ण पाषाण प्रतिमाएं रखी हुई हैं। इसके अतिरिक्त संग्रहालय में सग्रहीत पुरा सामग्री में पाषाण प्रतिमाएं, कांस्य प्रतिमाएं, लघुचित्र, मृणमयी मूर्तियां, सिक्के तथा अस्त्र-शस्त्र प्रदर्शित है। इनमें विशेष रूप से दर्शनीय ग्यारसपुर की शालभंजिका की मूर्ति है जिसे भारतीय मोनालिसा के नाम से जाना जाता है।
पर्यटक सूचना:

स्थान: ग्वालियर दुर्ग, ग्वालियर, मध्य प्रदेश।
समय: सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक ( सोमवार को बंद रहता है )
प्रवेश शुल्क:
     भारतीय नागरिक: ₹20
     विदेशी पर्यटक: ₹200
कैसे पहुंचे: 
आप ग्वालियर किले तक टैक्सी या रिक्शा का सहारा ले सकते हैं। 

गुजरी महल सिर्फ एक इमारत नहीं है, बल्कि यह प्रेम कहानी, इतिहास और कला का संगम है।

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