Bheem singh rana ki chatri Gwalior
ग्वालियर किले का भूप सिंह राणा की छतरी: इतिहास और शौर्य का प्रतीक
ग्वालियर किले की ऐतिहासिक धरोहरों के बीच भूप सिंह राणा की छतरी, वीरता और शौर्य का एक अनूठा प्रतीक है। यह स्मारक ग्वालियार के राणा भूप सिंह (कुछ इतिहासकार उन्हें भीम सिंह राणा भी कहते हैं) को समर्पित है, जिन्होंने 18वीं शदी में ग्वालियर के किले पर अपना शासन स्थापित किया था।
भूप सिंह राणा गोहद के एक प्रमुख राजा थे, जिन्होंने 1740 ईस्वी में मुगल साम्राज्य के पतन के दौरान ग्वालियर किले पर अधिकार कर लिया था। मुगल गवर्नर अली खान के समर्पण के बाद, राणा साहब ने ग्वालियर में अपना शासन स्थापित किया।
यह छतरी लाल बलुआ पत्थर से निर्मित एक बहु-मंजिला संरचना है। इसकी खासियत यह है कि हर मंजिल पर चारों दिशाओं में दरवाजे बने हुए हैं, जो छत तक जाने का रास्ता प्रदान करते हैं। छतरी की वास्तुकला में मुगल प्रभाव भी देखने को मिलता है, लेकिन साथ ही कुछ भारतीय स्थापत्य तत्व भी हैं।
भूप सिंह राणा की छतरी तक पहुंचने के लिए थोड़ी चढ़ाई करनी पड़ती है। माना जाता है कि यात्रा के लिए लगभग आधा घंटा लगता है। गौरतलब है कि हर साल राम नवमी के अवसर पर जाट समुदाय द्वारा यहां एक विशेष उत्सव का आयोजन किया जाता है, क्योंकि भूप सिंह राणा और छत्र सिंह राणा दोनों ही जाट समुदाय से ताल्लुक रखते थे।
यह छतरी इतिहास प्रेमियों, वास्तुकला के दीवाने और युद्ध इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए एक आकर्षक स्थल है। ग्वालियर किले की यात्रा के दौरान भूप सिंह राणा की छतरी को देखना न भूलें।
इसका टिकट कर्ण विक्रम आदि महलों के साथ शामिल है, इसकी कीमत भारतीय व्यक्ति के लिए 20 रुपये और विदेशी लोगों के लिए 200 रुपये है।
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