Ladhedi gate Gwalior

ग्वालियर शहर की उत्तरी दिशा में स्थित एक छोटी पहाड़ी पर बनी एक इमारत, जिसे वर्तमान में 'एच' के रूप में जाना जाता है, वास्तव में लधेड़ी गेट है। यह इमारत ग्वालियर दुर्ग से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करती है।



निर्माण का इतिहास

इस इमारत का निर्माण लगभग 14वीं और 15वीं शताब्दी के मध्य में तत्कालीन राजा कल्याण मल द्वारा करवाया गया था। यह इमारत उनके मित्र और जौनपुर के शासक आजम लाद खान के स्वागत के लिए बनाई गई थी। उस समय इस स्थान का नाम जौनपुर की तर्ज पर यमनपुर रखा गया था, जो बाद में सुरक्षा की दृष्टि से एक वाचटावर के रूप में प्रयोग होने लगा।



यह इमारत न केवल एक सुंदर वास्तुकला का उदाहरण है, बल्कि यह शहर के इतिहास और संस्कृति का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह इमारत शहर की दूरदृष्टि को भी प्रदर्शित करती है, जो उस समय के शासकों की दूरदर्शिता को दर्शाती है।

फांसी दी जाती थी

प्रचलित कथाओं के अनुसार, इस स्थान का उपयोग फांसी घर के रूप में भी किया जाता था। जहां अपराधियों और गद्दारों को नगर से दूर लाकर उक्त स्थान पर फांसी देकर शव को कई दिनों तक लटकाया जाता था। ताकि अन्य गद्दारों और अपराधियों को सबक मिल सके।

अफवाहें भी प्रचलित हैं

हालांकि, इस इमारत के बारे में कई अफवाहें भी प्रचलित हैं, जिनमें से एक यह है कि तत्कालीन राजाओं ने युद्ध के दौरान यहां भारी मात्रा में खजाना छिपाने के लिए गाढ़ दिया था। लेकिन इतिहास के पन्नों में इस तरह की किसी भी बात के साक्ष्य नहीं मिले हैं।



आजकल, यह इमारत शहर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, और लोग यहां अपने इतिहास और संस्कृति के बारे में जानने के लिए आते हैं। यह इमारत न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि यह शहर की सुंदरता और वास्तुकला का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 




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